सिनेमा: देस बिदेस:

 

des bidesसिनेमा: देस बिदेस:

राजीव गांधी सरकार की – खुले आकाश की नीति – के अंतर्गत जब निजी
टेलीविजन कंपनियों को भारत में प्रसारण की अनुमति मिली, तो भारतीय
सिने दर्शक चैबीस घण्टे के लिए छोटे पर्दे का मालिक बन बैठा। हिंदी सिने
प्रेमियों की फिल्मी संगीत के प्रति जबरदस्त रुचि को घ्यान में रखते हुए कुछ
चैनलों ने सिर्फ फिल्मी गीतों या एलबमों के प्रदर्शन का दायित्व सम्हाल लिया।

यहां पर इस बात की चर्चा करना भी अनुचित नहीं होगा कि वीडियो कैसेट
रिकाॅर्डर के आने के बाद जब घर बैठे अपनी पसंद की फिल्म देखने की सुविधा
बढ़ी, तो सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या कम होने लगी। फिर जब किराए के
वी. सी. आर. घर घर पहुंचने लगे और जाली कैसेटों का व्यापार फलने फूलने
लगा, तो फिल्मकारों को बड़े पर्दे के आगे एक बड़े खतरे का आभास हुआ।
डिजिटल डिस्क के आगमन के उपरांत घर बैठे मनचाहे सिनेमा का आनंद लेने
वालों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई ; लेकिन यह खेल तब जारी रह सकेगा,
जब फिल्मकार फिल्में बनाते रहेंगे।

दूसरी ओर विदेशी बाजारों में ताल – 1999 और लगान – 2001 की सफलता से
स्पष्ट हुआ कि विषय के वर्णन की रोचक विधि के प्रशंसक संसार में सर्वत्र मौजूद हैं।
जापान, मलेशिया, दक्षिण कोरिया जैसे पूर्व एशियाई देशों में, जहां अप्रवासी भारतीयों
की संख्या नगण्य है ; हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ने लगी। हांगकांग में डब की
जाने वाली हिंदी फिल्मों में चीन भी दिलचस्पी लेने लगा है। आशावादी व्यापार की
दुनिया में दिखाई देने वाला उतार चढ़ाव कोई नई बात नही, इसलिए हिंदी फिल्मोद्योग
भी इसका अपवाद नहीं। क्रमशः

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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