विचार: पंचतत्व:

 

panchtatvaविचार: पंचतत्व:

गुरु – निःसंदेह वत्स! वेद-पुराण प्रमाण हैं। गहन अध्ययन करो।

शिष्य – किताबों में मेरा दम घुटता है गुरुदेव ! मैं तो खुली हवा में सांस लेना चाहता
हूं।

गुरु – ये तो बड़ी खुशी की बात है वत्स! जिंदा रहने के लिए हवा ही सबसे पहली
जरूरत है, पर जीवन में आगे बढ़ने के लिए अध्ययन भी आवश्यक होता है।

शिष्य – आगे बढ़ना किसे है गुरुदेव ! मैं तो उपर उठना चाहता हूं। आसमान को
छूना चाहता हूं।

गुरु – आसमान ? वहां किसी की भूख नहीं मिटती वत्स ! उसके लिए भूमि पर ही
आना पड़ता है।

शिष्य – अब आप कहोगे कि जमीन भी जिंदगी का एक जरूरी तत्व है।

गुरु – बेशक वत्स! इन तत्वों की बात एक शेर में बड़ी खूबसूरती के साथ कही गई
है।

शिष्य – शेर में ? इरशाद !

गुरु – जिंदगी क्या है ? अनासिर में जहूर-ए-तरतीब ।
मौत क्या है ? किसी अज्ज़ा का परीशां होना।

शिष्य – गुरुदेव ! अनासिर मतलब ?

गुरु – पंचतत्व वत्स!

शिष्य -जहूर-ए-तरतीब माने ?

गुरु – क्रमबद्धता वत्स! जो लोहे के टुकड़े को चुंबक बना देती है और जीवन को
आकर्षक।

शिष्य – अज्ज़ा ?

गुरु – अंश या तत्व।

शिष्य – परीशां होना ?

गुरु – विचलित होना।

शिष्य – वाह गुरुदेव ! वाह !

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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