सिनेमा: एकता की भावना:
इस दौर में जब ‘प्रेम’ पारिवारिक फिल्मों में व्यस्त होने लगा, तब युद्ध की
रणभूमि की ओर उन्मुख होना स्वाभाविक ही था। अनेक फिल्मकार देश के
विभिन्न भागों में चल रहे विविध संघर्षों की पृष्ठभूमि में सक्रिय आतंकवाद को
मिटाने के लिए राष्ट्रीय एकता की भावना की प्रतिष्ठा में संलग्न हुए, क्योंकि
देश की सुख शांति के बिना परिवार की हंसी खुशी कैसे ?
इस प्रकार की फिल्मों का प्रारंभ मणिरत्नम के निर्देशन में बनी रोजा – 1992
से माना जाता है। इस सिलसिले को आगे बढ़ाने वाली फिल्मों में आर्मी, कारतूस –
1996; चेम्पियन, बाॅर्डर – 1997; पुकार, दिल से – 1998; सरफरोश, कोहराम
– 1999; तिरंगा, रिफ्यूजी – 2000; मिशन कश्मीर, जंग और अमन – 2001;
फिजा, मां तुझे सलाम – 2002; सोलह दिसंबर, एल. ओ. सी. – 2003; जमीन,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो – 2004 आदि की लंबी सूची उपलब्ध है।
इसके अतिरिक्त दूसरी ओर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के तत्वावधान में अनेक
अप्रवासी भारतीयों ने कम बजट में ऐसी कलात्मक फिल्मों का निर्माण किया, जो
व्यावसायिक दृष्टि से भी सफल मानी जाती हैं। इस श्रेणी की फिल्मों में जय गंगा,
मिस विटीज चिल्ड्रन – 1993; द मेकिंग आफ महात्मा – 1995; संदोशन, एण्ड
द शो गोज आॅन, एक्वी नादिर – 1996; डांस आॅफ द विंड, शैडोज इन द डार्क
– 1997; बाॅलीवुड काॅलिंग, मानसून वेडिंग – 2001 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
मीरा नायर की मानसून वैडिंग वेनिस फिल्म महोत्सव में पुरस्कृत भी हुई। क्रमशः