गजल: जो:
कौन हैं ग़म के अंधेरे को
मिटा देते हैं जो
धड़कनों में मकसदों की लौ
लगा देते हैं जो
ज़िंदगी में कीमती हैं
सिर्फ वो लम्हे जनाब
नेक औ उम्दा ख़यालों को
जगा देते हैं जो
चार दिन के बाद
पछताते हैं अपने हाल पर
काट करके पेड़
खुद को ही दगा देते हैं जो
जो सज़ा देते हैं
उनसे भी बड़े हैं लोग वो
आदमी को प्यार से
समझा बुझा देते हैं जो