लोकगाथा: लक्ष्यबेध: 9
चक्कर का श्यौल पड़ि नजर न पैठनी।
कै क्वे बाँण ले, रो-बेद न लागनूँ।
राजा दुरपद आब होकम दिनान-
बरमाचारी लोग तुमि, रो-बेदो मार हो।
ए जोद्धा अर्जुन आब ठाड़ा उठी जाँछ।
सिखा लटी बठी बाँण निकालँछ।
हिरदी में आपणा सत्त पुकारँछ।
हिरदी में गुरूज्यू को ध्यान ले लगूँछ।
ए बायू को पूत होलो बरमा को नाती।
कुन्ता को पूत होलो कोखी को पूत।
तेलकि भज्याली, माँछि-आँख देखँछ।
सुनहली मछुली स बाँण मारीदिंछ।
धूमै दिछ जोद्धा हो धरम चक्कर।
ए बरमाण घर को छै बरमा कुमार।
ए ठाकुर घर को छै बड़ो महाराज।
ए छेतरी घर को छै बड़ो महा बली। क्रमशः