गजल: रहे हैं:
उस पार रहे हैं
कभी इस पार रहे हैं
उम्मीद के तालाब में
झक मार रहे हैं
ना जीत रहे हैं
न कभी हार रहे हैं
बदले हुए हालात को
पुचकार रहे हैं
दुतकार रहे हैं
उन्हें धिक्कार रहे हैं
पेड़ों के मामले में
जो गद्दार रहे हैं
बेकार रहे हैं
भले लाचार रहे हैं
फिर भी खुशी के आने के
आसार रहे हैं