सिनेमा: राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम:
1980 में फिल्म वित्त निगम तथा इंडियन मोशन पिक्चर एक्स्पोर्ट काॅर्पोरेशन के विलय से गठित राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ने अनेक फिल्मों के निर्माण हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की ; जैसे – अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, ंआक्रोश, अर्धसत्य, तरंग, पार्टी, अंधी गली, दामुल, पार, मोहन जोशी हाजिर हो, होली, परिणति, प्रतिघात, सलीम लंगड़े पे मत रो, यह वह मंजिल तो नहीं, एक बार फिर आदि। निगम ने भारतीय निर्माता निर्देशकों के अतिरिक्त विदेशी सह निर्माताओं के सहयोग से भी अनेक फिल्में बनाईं ; जैसे – गांधी 1983, न्यू इ्रडिया ट्रंक 1983, सलाम बाॅम्बे 1988, उन्नी 1988, हैदराबाद ब्लज 1988 आदि।
फिल्म वित निगम की भांति राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम की भूमिका में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगा। उसे विदेशी फिल्मों के आयात के अतिरिक्त 1981 से 1988 तक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों के आयोजन का दायित्व भी निभाना पड़ा। निगम ने दूरदर्शन के साथ सह निर्माता के रूप में अनेक धारावाहिकों के निर्माण में सहभागिता की। दूरदर्शन के मेट्रो चैनल के संचालन में संर्लन होने के उपरांत राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम फिल्म निर्माण के अपने प्रमुख लक्ष्य से दूर होता चला गया।
समानांतर सिनेमा की देखा देखी मुख्य धारा से जुड़े कुछ प्रतिभा संपन्न फिल्मकारों ने भी रूढिगत विषयों से हटकर फिल्में बनाना प्रारंभ किया। इन फिल्मों में मेरे अपने, दो बूंद पानी, आनंद, सफर, कोशिश, आंधी, दूरियां, गमन, घरौंदे, गृह प्रवेश, भोपाल एक्सप्रेस, बवंडर, चांदनी बार, चमेली, कगार, इंसाफ: द जस्टिस आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।