
लोकगाथा: लक्ष्यबेध: 6
हमरी अबै ले नहाती गरुड़ हो।
आबला गरुड़ बोलानें लाग्यो-
तुमि हो पाण्डवौ मेरि पिठी में बैठला हो।
द्वीये घड़ी में पाँचालै पूजूँलो हो।
पाँचे भाया ला गरुड़ पीठी बेठ्या।
माता कुन्ती ले गरुड़-पीठी में बे गैंन।
गरुड़ै पंछी हो उड़नें लाग्यो।
पाकृचालै देश होली कपिला नगरी।
तैला नगरी आतमैराम रौलो।
पाण्डवै राठ र्यान तैका डेरा हो।
पाण्डव हुन कै बेर क्वे नीं जाँणना।
पाण्डवै राठ कौतिक पूज्या।
राजा हो, राजनकि लागि रै कछरि।
राजा रे कुमारन-कि लागि रै कछरि।
दरीरी दीवानूँकि एकछ कछरि।
बलिरे बामनूँ कि एकछ कछरि। क्रमशः