
सिनेमा: नया सिनेमा:
‘सारा आकाश’ एक ऐसी फिल्म थी, जिससे हिंदी में नए सिनेमा का प्रारंभ माना जाता है। इस फिल्म की जैसी सफलता मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ को छोड़कर ‘फिल्म वित निगम’ के सहयोग से बनी अन्य फिल्मों को नहीं मिली । एम. एस. सथ्यू की ‘गर्म हवा’
और राजेंद्र सिंह बेदी की ‘दस्तक’ कुछ अन्य अपवाद हैं। इस कोटि की अन्य फिल्मों में आषाढ़ का एक दिन, फिर भी, एक अधूरी कहानी, बदनाम बस्ती, उसकी रोटी, माया दर्पण, अंकुर, दुविधा, परिणय, अंकुश, निशांत, पार्टी, भूमिका, मंथन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
‘फिल्म वित निगम’ की आर्थिक सहायता सिनेमा की नई धारा तक सीमित रही। अतः मुख्य धारा से जुड़े फिल्मकारों ने यह आरोप लगाया कि निगम उनके साथ पक्षपात तो करता ही है, अव्यावहारिक फिल्में बनाकर राॅ स्टाॅक भी बरबाद करता है। कला के नाम पर अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली इन फिल्मों में आम वितरक भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते। इन आरोपों का उत्तर देने के लिए निगम के महाप्रबंधक श्री नितिन सेठी ने 1974 में एक सार्वजनिक पत्र लिखा:-
‘‘ कलात्मक सिनेमा का उद्देश्य दर्शकों और अच्छी फिल्मों के बीच अवरोध को समाप्त करना है। भारत में वितरण और प्रदर्शन का चरित्र कुछ इस प्रकार का है कि न केवल फार्मूला फिल्मों , सितारा फिल्मों या व्यावसायिक फिल्मों को प्राथमिकता दी जाती है। प्रोडक्शन तथा प्रदर्शन के क्षेत्र काले धन की उपस्थिति से दूषित हैं इन परिस्थितियों में केवल काॅर्पोरेशन ही सार्थक भूमिका निभा सकता हैं।’’