
सिनेमा: समानांतर:
विषय की दृष्टि से अभी तक प्रणय प्रधान फिल्मों का प्राचुर्य रहा, जिनकी ‘सांग एण्ड डांस’ विषयक बनावट को शम्मी कपूर ने अपनी उर्जस्वित भंगिमाओं से अभिनव आयाम दिया। इस परंपरा में शक्ति सामंत की आराधना – 1969 से चर्चा में आने वाले राजेश खन्ना को उनकी बेमिसाल अदाकारी की वजह से ‘सुपर स्टार’ की संज्ञा प्रदान की गई। इस बीच लंबे अरसे से चली आ रही रोमानी फिल्मों की बनावट से हटते हुए ‘भले लोगों’ को प्रताड़ित करने वाले ‘बुरे लोगों’ से खफा अमिताभ बच्चन ने ‘जंजीर’ और ‘दीवार’ के बाद ‘एंग्री यंगमैन’ के रूप में स्थापित होकर हिंदी सिने दर्शकों को इतना आकर्षित किया कि उन्हें बड़े बड़े स्टारों में सर्वोपरि स्थान प्राप्त हुआ।
शिल्प की दृष्टि से अभी तक सिने उद्योग में विदेशी तकनीक के आयात में अभिवृद्धि होती रही, जिसका प्रोडक्शन, एडिटिंग तथा प्रोजेक्शन के स्तरों पर प्रयोग भी बढ़ा। अमेरिकी कंपनी ट्वेंटियथ सेंचुरी फाॅक्स ने 1975 में सिनेमास्कोप टेक्नोलोजी को बढावा देने के लिए स्टीरियोफोनिक उपकरण उपलब्ध कराए। इसके अतिरिक्त कुछ विदेशी फिल्मों के प्रदर्शन हेतु थ्री डी / त्रिआयामी तकनीक का भी उपयोग किया गया। इन चीजों की सहायता से थल के अलावा जल तथा नभ में भी दुर्घटना, विस्फोट, मार-घाड़, युद्ध आदि के फिल्मांकन में नए नए प्रयोग प्रारंभ हुए और एक्शन फिल्मों का जबरदस्त दौर चला।
प्रेम त्रिकोणों के घटनाओं के बेतुके सिलसिलों और उबाउ नाटकीयता से अनुप्राणित/मुख्य धारा फिल्मों के अतिरिक्त कुछ फिल्मकारों ने समानांतर/नई धारा की फिल्मों में रुचि लेना प्रारंभ किया। फिल्म वित निगम से सहायता प्राप्त कम बजट की इन फिल्मों ने ग्लेमर से नाता तोड़कर आम आदमी से रिश्ता जोडने का प्रयास किया। विषय की संवेदनशीलता को उभारने वाली ऐसी फिल्मों का ढांचा पारंपरिक रूढ़ियों से भिन्न होने के कारण परिवर्तन प्रिय हिंदी सिने दर्शकों में एक नई जिज्ञासा उत्पन्न हुई।