
गजल: आदमी:
अपनी जुबां से जब भी मुकरता है आदमी
जीते हुए भी उस घड़ी मरता है आदमी
यह जानते हुए भी कि हर चीज है फ़ानी
अपने ही उसूलों से उतरता है आदमी
पेड़ों की जगह बन गए सीमेंट के जंगल
मतलब के लिए क्या नहीं करता है आदमी
जंगल में जानवर लगा करते हैं खतरनाक
शहरों में आदमी से भी डरता है आदमी