
सिनेमा: पुरस्कार:
विदेशों में पुरस्कृत हिंदी फिल्मों में संत तुकाराम -1937 को वेनिस में, नीचानगर -1947 को फ्रांस में, कल्पना -1949 को बेल्जियम में, दो बीघा जमीन -1954 को फ्रांस में, बन्दिश -1956 को दमिश्क में, जलदीप -1957 को वेनिस में, जागते रहो -1957 को कार्लोविवेरी चलचित्रोत्सव में, दो आंखेें बारह हाथ -1958 को बर्लिन में, मदर इंडिया -1958, हीरा मोती -1962, गंगा जमना -1962 को कार्लोविवेरी चलचित्रोत्सव में तथा यादें -1967 को पश्चिमी जर्मनी में सम्मानित किया गया।
स्वदेश में राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाली फिल्मों में मिर्जा गालिब -1955, दो आंखेें बारह हाथ -1958, अनुराधा -1960, शहर और सपना -1964, तीसरी कसम -1966 के नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा राष्ट्रपति का रजत पदक प्राप्त करने वाली फिल्मों में झनक झनक पायल बाजे -1956, मधुमती -1956, अनाड़ी -1959, मुगल ए आजम -1960, धर्मपुत्र -1961, दोस्ती -1964 व अनुपमा -1966 के नाम उल्लेखनीय हैं।
वस्तुतः चलचित्र का माध्यम कितना ही अंतर्राष्ट्रीय क्यों न हो, उसमें राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक चेतना तथा विचारधारा का समावेश किसी न किसी रूप में रहता ही है। प्रत्येक देश के चलचित्र शिल्प में विदेशी प्रभाव के बावजूद स्वदेशी परिवेश रहता ही है, जो अपने देश की आशाओं एवं आकांक्षाओं को अनायास ही अभिव्यक्त कर देता है। स्वदेशी परिवेश की अवहेलना करने वाली फिल्में एक ओर अपने देशवासियों के साथ अन्याय तो करती ही है, दूसरी ओर अपना कोई स्तर भी स्थापित नहीं कर पातीं।