
सिनेमा: सरकारी प्रयास:
आजादी के बाद सरकार की ओर से सिने उद्योग की समस्याओं पर विचार करने के लिए एस. के. पाटिल की अध्यक्षता में गठित जांच समिति की 1951 में प्रकाशित रिपोर्ट में फिल्म काउंसिल, फिल्म फाइनेन्स काॅर्पोरेशन, फिल्म इंस्टीट्यूट तथा अभिलेखागार की स्थापना की सिफारिश की गई। सिने उद्योग के निरीक्षण एवं नियंत्रण हेतु प्रस्तावित फिल्म काउंसिल का विचार अनेक निर्माता निर्देशकों के हलक के नीचे नहीं उतर पाया, जिसके कारण उक्त रिपोर्ट पर तत्काल अमल नहीं हो सका।
चयनित फिल्मों के निर्माणार्थ कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1960 में फिल्म फाइनेन्स काॅर्पोरेशन के अतिरिक्त स्क्रिप्ट लेखन, मोशन पिक्चर, फोटोग्राफी, साउण्ड इंजीनियरिंग, फिल्म संपादन आदि के अध्ययन के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सौजन्य से पुणे में फिल्म इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई तथा वहां के विद्यार्थियों को पाठ्यचर्या संबंधी फिल्म्स, स्क्रिप्ट्स, पुस्तकें, पत्रिकाएं उपलब्ध कराने के लिए 1964 में राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार की पुणे में स्थापना की गई।
हिंदी फिल्मों पर विदेशी फिल्मों से प्रेरित या प्रभावित होने का दोष मढ़ा जाता रहा है, पर आज के वैश्वीकरण के युग की दूरसंचार क्रांति में भारतीय फिल्मकारों का विदेशी फिल्मों को देखना, समझना और यत्किंचित् ग्रहण करना अस्वाभाविक नहीं माना जाना चाहिए। इस प्रकरण में यह भी स्मरणीय है कि हिंदी फिल्में, 1954 में भारतीय फिल्मों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत करने की योजना के प्रारंभ होने के पहले से, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पुरस्कार प्राप्त कर चुकी थीं।