गजल: लगता है:

कहीं भी जाइए ग़म आसपास लगता है
कोई भी आदमी अक्सर उदास लगता है
काट के पेड़ इमारत की नुमाइष करना
षुरू षुरू में तो वैभव विलास लगता है
फिर नई और कई बीमारियां उगती हैं तो
हुजूम दर्द का हर वक्त पास लगता है
जाने क्या बात है जाने क्या वजह है यारो
खुल के रोना भी कभी अट्टहास लगता है