
लोकगाथा: लक्ष्यबेध: 2
बुड़ी संजया कूँछि-मैं जेठि छूँ।
बालि कूँ छिन – मैं जेठि छूँ।
औ माता संज्या हमारा घरे औ।
बाल-गोपाल की क्ष-रक्ष बाली।
मालु का पात में पूजा लगूँगो।
गै का पुछड़ लागि संज्यामाता ऐंन।
दूद की कोठाली लागी संजया माता ऐंन।
ऐंन संज्या मातास आँगन में बै गैंन।
फिरि उठि संजया मंजे ली पाँणा गैंन।
दियड़ी साँगण है बालन लागिन गैंन।
तैे सुवा स्वामी, दियड़ो केन बाल्यो?
क्याकि दियड़ि बणूँ क्या को अधार?
पाँणी को दियड़ो मूलै न बलानूँ
दिया खिंन चैंछ कपूर-बासो घियो।
कैलास धुरी है कपूर गै मगैछ।
कपीली गाई को कपूर-बासो धियो
जाग स्वामी दियड़ा जगिन पूरी रात।
जाग-जाग दियड़ा संगल पूरी रात। क्रमशः