लोकगीत : खतड़ुवा और घुगुतिया :

:
आश्विन संक्रांति के दिन खतड़ुवा
त्योहार मनाने की प्रथा है।
कुमाऊं के राजा लक्ष्मीचंद ने आठवीं बार गढ़वाल पर आक्रमण
कर वहां
के सेनापति खतड़सिंह को हराया था, अत: शाम के वक्त घास फूस का
पुतला बनाकर जलाते और गाते हैं –
भेल्लो जी भेल्लो भेल्लो खतड़ुवा
गै की जीत खतड़वै की हार, खतड़ु लागो धारै धार
गै भैटी स्योल, खतड़ पड़ाै भ्योल
घुगुतिया :
मकर संक्रांति के दिन कुमाऊं में
घुगुतिया नामक त्योहार मनाया
जाता है। इस अवसर पर बच्चे आटे से बने हुए घुगुते खिलाने के
लिए कौवों को बुलाते और गाते हैं –
काले कव्वा काले, का
ले का ले
ले कव्वा पूरी, मैं कैं दिए सुनूं छुरी
ले कव्वा बड़ाे, मैं कैं दिए सुनूं घड़ाे
ले कव्वा भात, मैं कैं दिए सुनूं थात
ले कव्वा मेचुलो, भोल बटै आलै,
त्यारा गिजा थेचूंलो
L