उत्तराखण्ड: संस्कार:

उत्तराखण्ड: संस्कार:

अलग-अलग समय में विभिन्न स्थानों से विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषाई, भौगोलिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों के आकर बसने से उत्तराखण्ड में एक अनूठी भाषा और संस्कृति ने जन्म लिया। यहां के आदिवासी भी इन मेहमानों के साथ घुलमिल गए। मिश्रण, समन्वय, सामंजस्य और समाहार की इस सुदीर्घ परंपरा ने वैविध्यपूर्ण किंतु एक सूत्र में गुंथी हुई कुमाउनी भाषा एवं संस्कृति का पल्लवन किया।

प्रत्येक व्यक्ति इस समाज छत्ते की वृद्धि के लिए मधुमक्खी की तरह प्रयत्नषील है और अपने छोटे बड़े हर प्रयत्न मधु से उसमें वृद्धि करता जाता है। इस छत्ते से अलग हो अपनी समृद्धि-मात्र का प्रयत्न इस प्रणाली में अनैतिक माना गया है। मांगलिक उत्सवों में जुटने वाला यह जमघट किसी दिखावे की भावना से पे्ररित नहीं होता। उसमें कोई औपचारिकता भी नहीं होती अपितु आत्मीयता और सम-सुख भावना को एक होकर बांटने की लोक पद्धति इसकी प्रेरक होती है। यह संस्कृति एक दूसरे के लिए समर्पित रहने की भावना पर ही टिकी हुई है।

व्यक्तिगत दृष्टिकोण परिष्कृत करने के लिए पूजा-उपासना, पारिवारिक रीति-नीति को उत्कृष्ट बनाए रखने के लिए संस्कार प्रक्रिया है। ठीक इसी प्रकार समाज को समुन्नत-सुविकसित बनाने के लिए सामूहिकता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, नागरिकता, परमार्थ-परायणता, देषभक्ति, लोकमंगल जैसी सत्प्रवृत्तियां विकसित करनी पड़ती हैं। उन्हें सुस्थिर रखना होता है, यह भी बार-बार स्मरण दिलाते रहने वाला प्रसंग है – इस प्रयोजन के लिए पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं, इन्हें सामाजिक संस्कार प्रक्रिया ही समझना चाहिए।

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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