
गजल: तुम :
तुम समझते हो कि जब भी शमा जलती होगी
उसमें चाहत की नरम लौ भी मचलती होगी
तुम समझते हो इन्तज़्ाार के नम लम्हों में
मोमबत्ती की तरह रात पिघलती होगी
तुम समझते हो कि भोली उदास आँखों को
प्यार के चन्द्रमा की चाँदनी खलती होगी
तुम समझते हो कि नाकामयाब राहों में
जब भी होगी वो किसी और की गलती होगी