
उत्तराखण्ड: संस्कृति:
संस्कृति का संबंध व्यक्ति के संस्कार एवं आचार-व्यवहार से होता है, जब कि सभ्यता उसके खान-पान तथा रहन-सहन से संबंधित होती है। सच तो यह है कि संस्कृति और सभ्यता अन्योन्याश्रित होते हैं, क्योंकि संस्कृति के बिना कोई समाज सभ्य नहीं हो सकता। यही संस्कृति किसी समाज को अन्य समाजों से अलग करती या विषिष्ट बनाती है।
चार व्यक्तियों को एक एक रोटी मिली । पहले व्यक्ति ने रोटी मिलते ही खा ली। दूसरे व्यक्ति ने तीसरे व्यक्ति की रोटी तक छीन कर खा ली। चैथे व्यक्ति ने अपनी रोटी को आधा करके एक हिस्सा तीसरे व्यक्ति को दे दिया। पहले व्यक्ति के आचरण को प्रकृति कह सकते हैं, जो केवल अपने सुख की बात सोचता है। वह दूसरों को तंग भी नहीं करता, न ही उनकी सहायता करता है। दूसरे व्यक्ति के बर्ताव को विकृति कह सकते हैं, कारण यह कि वह अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए दूसरों को कष्ट देने में हिचकिचाता नहीं है। चैथे व्यक्ति के स्वभाव को संस्कृति कहा जा सकता है। जो उसका अपना है, वह भी दूसरों को, जिनके पास कुछ है नहीं, में बांटने की मनोदषा रखता है; अपने सुख के साथ ही विष्वकल्याण की कामना करता है।
भाषा, रक्त और सांस्कृतिक परंपराओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि खसदेष और किरात देष बनने से पूर्व उत्तराखण्ड कोल जाति का क्रीड़ास्थल था। इस जाति के षिल्पकार ही वास्तव में यहां के समाज के प्रारंभिक निर्माता हैं। यहां की सभ्यता के विकास में गड़ से लेकर गढ़ तक कोई भी ऐसा काम नहीं, जो इनके षिल्प से न निखरा हो; जलाषय से लेकर देवालय तक कोई भी ऐसा मुकाम नहीं, जो इनकी कला से न संवरा हो।