
सिनेमा: नई पीढ़ी:
पृथ्वीराज कपूर जैसे कद्दावर नेता के सुपुत्र राज कपूर ने अपने आर के बैनर तले जो फिल्में बनाईं, उनमें आधुनिक जीवन की विसंगतियों, शहरी पाखण्ड, मूल्यों में गिरावट तथा आम आदमी की आजादी के प्रति क्षीण होती भावनाओं के उदाहरण मिलते हैं। उनकी आवारा – 1951, बूट पाॅलिश -1954, श्री 420 – 1955, जागते रहो – 1956, जिस देश में गंगा बहती है – 1960, संगम – 1964, बाॅबी – 1973 उल्लेखनीय फिल्में हैं। इन फिल्मों में फोटोग्राफी और लाइटिंग की उम्दा तकनीकी के प्रयोग से कथानकों की भावधाराओं को अत्यंत सहजता के साथ संप्रेषित किया गया है।
इस स्वर्णिम काल में हिंदी सिनेमा को अपनी विशिष्ट प्रतिभा से प्रकाशित करने वाले अन्य फिल्मकारों में गुरुदत्त का अपना अलग स्थान है। उन्होंने उदयशंकर के अल्मोड़ा स्थित नृत्य संस्थान से अपना सार्वजनिक जीवन आरंभ किया था। एक कलाकार के जीवन में व्याप्त वेदनाओं की जीवंत चित्रण उनकी अपनी फिल्मों में देखा गया। उनकी फिल्मों में आर पार – 1954, मिस्टर एंड मिसेज 55 – 1955, प्यासा – 1957, कागज के फूल – 1959, साहब बीबी और गुलाम – 1962 अपनी निजी विशेषताओं के कारण हिंदी सिने दर्शकों को पसंद आईं। लाइटिंग और कटिंग के वह स्वयं महारथी थे। अबरार अल्वी के संवादों और साहिर लुधियानवी के गीतों ने उनके मनोरथ को अनुकूल गति प्रदान कर उनकी कृतियों को कालजयी बना दिया।
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ये इनसां के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाज़ों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ?
जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही सम्भलो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ?