
गजल: शायद:
जान बेदाम हो गई शायद
खासियत आम हो गई शायद
दिल के रोने पे हंसी आती है
चोट आराम हो गई शायद
आज फिर दर्द ने करवट ली है
गांव में षाम हो गई शायद
चंद पेड़ों के साथ जंगल में
सांस नीलाम हो गई शायद
गजल: शायद:
जान बेदाम हो गई शायद
खासियत आम हो गई शायद
दिल के रोने पे हंसी आती है
चोट आराम हो गई शायद
आज फिर दर्द ने करवट ली है
गांव में षाम हो गई शायद
चंद पेड़ों के साथ जंगल में
सांस नीलाम हो गई शायद