
- लोकभाषा: परप्रत्यय:
रूढ़ शब्दों के बाद संयुक्त होकर यौगिक शब्द रचना करने वाले प्रत्ययों को पर प्रत्यय कहते हैं। कुमैयाँ में ऐसे दो प्रकार के पर प्रत्यय मिलते हैं, जिनके संयोग से नए अर्थो वाले यौगिक शब्द बनते हैंः - देशी परप्रत्ययः कुमैयाँ में मूल अथवा परिवर्तित रूप में प्रचलित परंपरागत प्रत्ययों को देशी पर प्रत्यय कहा जा सकता है, जैसेः
आइन > ऐन – भैंसेन (भैंस की गंध)
आई > ऐ – पढ़ै (पढ़ाई)
आऊ > औ – बिकौ (बिकाऊ)
आहट > आट – घर्राट (घर्राहट)
ईला > इल – खर्चिल (खर्चीला)
एली > ए्लि – रते्लि (रतजगा)
ड़ा > ड़ – दुखड़ (दुखड़ा)
कार > आर – सुनार (स्वर्णकार)
पालक > वाला – गाड़िवालो् (गाड़ीवाला) - विदेशी परप्रत्ययः कुमैयाँ में प्रचलित विदेशी भाषाओं के पर प्रत्ययों को विदेशी पर प्रत्यय कहा जा सकता है, जैसेः
कार > कार – जानकार
गिरी > गिरि – कुल्लिगिरि
दार > दार – जोरदार
बाज > बाज – ध्वखबाज - रूपध्वन्यात्मक परिवर्तनः यौगिक शब्द रचना में प्रत्ययों के संयुक्त होने तथा समास के दोनों पदों का संयोग होने पर उनके संधिस्थल में यत्किंचित रूपध्वन्यात्मक परिवर्तन हो जाया करता है, जैसेः
ओ > व : लोहा $ आर – ल्वार (मध्यवर्ती ह का लोप)
ई > इ : पानी $ चक्की – पनचक्कि (मध्यवर्ती ई का लोप)
ए > इ : खेल $ औना – खिलौना्े (अंत्य आ का ओ)
ए > इ : भेट $ औला – भिटौला्े (अंत्य आ का ओ्)