
लोकगाथा: गौरा महेष्वर 7
हिन्दी रूपान्तर
ऐसा पूछते-पूछते गौरा मैतुड़ा पहुँच गईं।
इस भूखे भादों गौरा मैतुड़ा आई!
जेठ के महिने आती तो उमियाँ चबाती।
कातिक में आती, सिरौली चबाती।
तू क्या खाकर जाएगी, क्या लेकर जाएगी?
इस भूखे भादौ गौरा मैतुड़ा आई!
आते-आते महेश्वर भी मैतुड़ा पहुँच गये।
नाचो खेलो गौरा, देखूँ तुम्हारा नाँच।
कल तो कैलास चले जायेंगे,
मैं तुम्हारा नाच देखने आया।
जितने-जितने महेश्वर ने गहने गढ़वाए।
उतनी ही (विभिन्न मुद्राओं में) गौरा ने कंठ नचाया।
महेश्वर ने (खाली) घुटने हिलाये, ‘मुझे नृत्य नहीं आता।’
नाचते-नाचते गौरा-महेश्वर कैलास को चल पड़े।