
लोकगीत : व्रत त्योहार मूलक लोकगीत :
उत्तराखण्ड का मानस खण्ड (कुमाऊं) विविध व्रत त्योहारों तथा केदार खण्ड (गढ़वाल) शिव और पार्वती की अनेक पुरातन किंवदंतियों से जुड़ा है। ये मिथक कुमाऊं की लोकवार्ता के भी अत्यंत भावुक विषय हैं। ‘गौरा-महेश्वर’ की पूजा कुमाऊं की स्त्रियों का एक अत्यंत पवित्र अनुष्ठान है। इसके अतिरिक्त अन्य व्रत त्योहारों का संबंध भी मुख्यत: नारी समाज से रहता है, अत: इनके अनुष्ठान और गीत उन्हीं के बीच अधिक परम्परित हैं।
डोर-दुबड़ :
भाद्रपद शुक्ल सप्तमी और अष्टमी को
स्त्रियां दो मुख्य व्रत रखती हैं। पहले दिन वे
सप्त ग्रंथि युक्त डोर धारण करके शिव पार्वती का पूजन करती
हैं। दूसरे दिन स्वर्ण,
चांदी या रेशम का दुबड़ा बनाकर अपनी बाईं भुजा में बांधती
हैं। इस व्रत के अवसर
पर गंवरा पूजन से संबंधित गीत गाए
जाते हैं –
ग्ंवारा मैंसर ब्याई हुना कैले नीं
जाण्यो
कां रे पूजी लौली गंवरा कां रे भ्यो उज्यालो
छिना पूजी लौली गंवरा डांणां भ्यो उज्यालो
डांणां पूजी लौली गंवरा पटांगण भ्यो उज्यालो
पटांगण पूजी लौली गंवरा खोली भ्यो उज्यालो
खोली पूजी लौली गंवरा भीतर भ्यो उज्यालो L