
उत्तराखण्ड: लोकचर्या:
प्रातःकाल समय से जागना, स्नान करना, पूजा अर्चना करके अपने इष्टदेव व कुलदेवता को याद करना, षंखध्वनि करना, नौले से तांबे की गगरी में जल भरकर लाना, गाय-भैंस-बकरियों व अन्य पषुओं को जंगलों में चरने हेतु भेजना, पषुओं के स्थल की सफाई करना, घर-आंगन को मिट्टी-गोबर मिलाकर लीपना, भोजन बनाना, बच्चों द्वारा तीन-चार किमी पगडण्डी का सफर तय करके स्कूल जाना, खेती-बाड़ी का कार्य करना, घर-गृहस्थी का निर्वाह, आवष्यक आवष्यकताओं की व्यवस्था करना, दूध दुहाना, दूध-छांस-घी बनाना। संध्या कालीन समय में ईष्वर स्तुति, ऊं जय जगदीष हरे … सामूहिक रूप से कहना, स्कूली बच्चों द्वारा पहाड़े पढ़ना, स्कूल का काम करना, दादी द्वारा बच्चों को कहानी/लोरी सुनाते हुए सुलाना, भोजनोपरांत सो जाना – यही इनकी दिनचर्या होती है।
जहां तक खान-पान का प्रष्न है; ग्रामीण कुमैयें दाल, रोटी, चावल, हरी सब्जी, मडुआ व मक्के की रोटी, नीबू या दही की झोली, भट की चुड़कानी, गडेरी व गाबे की सब्जी, गहत की दाल, डुबके, त्योहारों पर विभिन्न प्रकार के पकवानों का आनंद लेते हैं। चूल्हे में भोजन बनता है तथा वजनी बर्तनों का प्रयोग किया जाता है। बीड़ी, सुरती व हुक्का का चलन भी ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत अधिक है। कुछ लोग नषीली चीजों का सेवन करने के आदी हो चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चाय खूब पी जाती है। हर वक्त चूल्हे में चाय का पानी रखा रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में चीनी, मिश्री व गुड़ का प्रयोग भी अधिक मात्रा में होता है।