सिनेमा: खोया पाया:

सिनेमा: खोया पाया:
जहां तक फिल्मों में सामाजिक – राजनीतिक चेतना के प्रभाव का सवाल है, द्वितीय महायुद्ध के कारण राॅ स्टाॅक पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद; कुछ प्रेरक फिल्मों का निर्माण हुआ। इन फिल्मों में एन. आर. आचार्य की संसार – 1941, महबूब खान की रोटी – 1942, ज्ञान मुकर्जी की किस्मत – 1943 तथा वी. शांताराम की डाक्टर कोटनीस की अमर कहानी – 1946 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनकी कहानियों में सच्ची देशभक्ति, सांप्रदायिक सद्भाव, सदाचार, राष्ट्र निर्माण और विश्वबंधुत्व की आदर्श भावनाएं प्रतिबिंबित हुई हैं।
इन फिल्मों में से बाॅक्स आॅफिस पर सुपरहिट फिल्म किस्मत ने हिंदी सिनेमा को एक नया प्लाॅट दिया – खोया और पाया। इस प्लाॅट पर आगे चलकर वक्त – 1965, राम और श्याम – 1967, सीता और गीता – 1972, चालबाज / अमर अकबर एंथोनी – 1977 जैसी कई लोकप्रिय फिल्मों का सिलसिला नजर आता है। इसके बाद भी बचपन में खोए भाई या बहन को किस्मत द्वारा दोबारा मिला देने वाले प्रसंगों पर आधारित फिल्मों को चाव से देखा जाता रहा है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के दौर में देश के विभाजन के फलस्वरूप सिने जगत के अनेक कलाकार, गायक, निर्माता, निर्देशक, सिनेमाघर और स्टूडियोज भी भारत-पाक बंटवारे की बलि चढ़ गए। बताया जाता है कि भारत के आठ स्टूडियोज में से चार तथा 2202 सिनेमाघरों में से 230 पाकिस्तान के हो गए। कलाकारों में नूरजहां, शाहनवाज, एस. एफ. हसन, फजली, गुलाम मोहम्मद, सादिक अली, नजीर, शमीम, रागिनी, मुमताज, स्वर्णलता और नीना आदि ने विभाजन के कारण पाकिस्तान का रुख किया

Advertisement

Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s