
उत्तराखण्ड: आडियो/वीडियो:
इधर अन्य भाषाओं व बोलियों के गीतों की आडियो/वीडियो के साथ-साथ कुमाउनी और गढ़वाली की बेषुमार कैसेटें/सीडी वगैरह बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें एक ओर यहां की बोलियों और सांस्कृतिक परिपाटियों का अनुरक्षण है, तो दूसरी ओर पाष्चात्य प्रभाव एवं सभ्यता की अभिनव दिषाओं का संकेत भी है। इस व्यवसाय के माध्यम से कुमाउनी का लोकसाहित्य या उसकी तर्ज पर लिखा गया गीतिकाव्य भी घर-घर पहुंच रहा है।
भाषा को किसी भी रूप में क्यों न देखें उसे समाज और व्यक्ति से अलग नहीं किया जा सकता और इसी कारण समाज और व्यक्ति से संबंधित जो भी उपकरण हैं, वे भाषा को प्रभावित करते हैं। दूसरी ओर यही भाषा समाज और व्यक्ति का स्वरूप स्पष्ट करने में सहायक होती है। भाषा के विविध अंग समाज और व्यक्ति की मनोभावनात्मक दषाओं से इस तरह जुड़े हुए हैं कि उनको अलग किया जाना संभव नहीं है। अतः भाषा के साथ समाज और व्यक्ति को संबंधित किया जाना पूर्णतः उपयुक्त है।