
सिनेमा: प्रेम त्रिकोण:
इसी बीच कलकत्ता के न्यू थियेटर्स ने हिंदी फिल्मों की कथाधारा में प्रेम त्रिकोण का नया फारमूला आजमाया। लव ट्राएंगल का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बांग्ला तथा हिंदी में बनी देवदास – 1935 मानी जाती है। शरत् चंद्र चटर्जी के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा के नायक को एक नई ट्रेजिक छबि प्रदान की। कहानी के समापन में नायक की पराजय ही उसकी विजय प्रतीत होती है।
देवदास की उम्मीद से बढ़कर कामयाबी आने वाले फिल्मकारों के लिए प्रेरक बनी। 1955 में विमल राय ने उसका दूसरा संस्करण तैयार किया, तो उसे भी हिंदी सिने रसिकों ने दिल खोलकर सराहा। नई सदी में 2002 में संजय लीला भंसाली के निर्देशन में देवदास का तीसरा संस्करण फिर से मील का पत्थर साबित हुआ।
1940 आने तक प्रेम प्रसंगों के अतिरिक्त हिंदी में भक्ति, इतिहास अथवा मार धाड़ आदि की परंपराओं पर आधारित अनेक फिल्में निर्माण के दौर से गुजर रही थीं। पर इसी समय जर्मनी द्वारा विश्वयुद्ध के आगाज का सिने उद्योग पर गहरा असर पड़ा। अचानक विदेश से आने वाले यंत्र और कच्ची फिल्में आयात करना दुश्वार हो गया। इंगलैण्ड और जर्मनी के जंग में उलझने पर यद्यपि अमेरिका तथा जापान ने भारत के निर्माता निर्देशकों की आवश्यकताओं की पूर्ति की, तथापि भले ही कुछ समय के लिए ही, पर विश्वयुद्ध का भारतीय फिल्म उद्योग पर प्रभाव अवश्य पड़ा।