
लोककथा: चल चल तुमड़ि बाटौं बाट
हिंदी अनुवाद: एक दिन एक बुढ़िया अपनी लड़की की ससुराल की ओर रवाना हुई। मार्ग में एक घना जंगल पड़ता था। बुढ़िया अकेली चली आ रही थी कि रास्ते में उसे एक बाघ मिला। बाघ बोला: ”दादी, दादी जाती कहाँ हो? मैं तुम्हें खाता हूँ।“ बुढ़िया ने उत्तर दिया: ”नाती, इस समय क्यों खाता है मुझे। मेरे षरीर की हड्डियों से तेरा पेट थोड़े ही भरेगा। मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूँ। वहाँ बेटी मुझे अच्छी-अच्छी चीजें खिलायेगी। जब मैं खूबी मोटी होकर लौटूँगी उस समय खा लेना मुझे, मेरे नाती।“
कुछ और आगे पहुँची बुढ़िया तो उसे एक भालू दिखाई दिया। भालू बोला: ”ओ दादी, तुझे खाऊँगा मैं।“ बुढ़िया ने फिर उत्तर दिया। ”नाती इस समय इन हड्डियों को चबा कर क्या करेगा। अपनी बेटी के यहाँ खूबी अच्छी-अच्छी चीजें खाकर मैं मोटी हो जाऊँगी। मैं जब लौटूँ तो उस समय खा लेना मुझे।“ भालू ने सोचा कि बुढ़िया ठीक ही कह रही है। उसने भी बुढ़िया को जाने दिया। कुछ और आगे पहुँची थी कि बुढ़िया ने एक षेर देखा। षेर भी बोला: ”दादी, खाता हूँ तुझे।“ बुढ़िया ने भी वैसा ही उत्तर दिया। उससे भी पीछा छुड़ा कर बुढ़िया अपनी बेटी के गाँव चल पड़ी। बेटी के घर पहुँच कर बुढ़िया ने रास्ते की कोई बात बेटी को नहीं बताई। बेटी के घर रहते बुढ़िया को लगभग एक माह बीत गया।