उत्तराखण्ड: प्रकाशन:

लिखित साहित्य की दृष्टि से कुमाउनी निरंतर समृद्ध होती रही है। मौलिक लेखन के अतिरिक्त इसमें अनुवाद कार्य भी हुआ है। कुमाउनी भाषा और उसकी बोलियों को लेकर षोध एवं लेखन कार्य जारी है। कुमाउनी रचनाओं के प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार में आंखर, कत्यूरी मानसरोवर, हिलांस, पुरवासी, रंत-रैवार आदि पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कुमाउनी के विकास के इस तीसरे चरण के साहित्यकारों में ब्रजेन्द्र लाल साह, चारुचंद्र पाण्डे, षेरसिंह बिष्ट ‘अनपढ़’, पार्वती उप्रेती, जयंती पंत, गिरीष तिवाड़ी, वंषीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ आदि के नामों की लंबी सूची बनाई जा सकती है, जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा इस भाषा को विषिष्ट आयाम प्रदान किए। इनका साहित्य न केवल विषयवस्तु वरन् षिल्प की दृष्टि से भी उन्नत है।
कबख्तै-कबख्तै मैं सोचूं –
यो टा्ल हा्ली फतोई जसि जिंदगी कैं
खुट्टि में टा्ंगि द्यूं । – दुर्गेष पंत