
सिनेमा: भाव और कला:
जर्मनी से निर्देशन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद हिमांशु राय ने 1934 में बाॅम्बे टाॅकीज की स्थापना की। इस तरह हिंदी फिल्म उद्योग में उनके प्रवेश साथ निर्देशक फ्रेंट्ज आॅस्टन, कैमरामैन जोजफ वाशिंग और आर्ट डायरेक्टर स्प्रेटी जैसे सिने विशेषज्ञ वहां काम पर लग गए। बाॅम्बे टाॅकीज का फिल्मों में फ्रेंट्ज आॅस्टन द्वारा निर्देशित अछूत कन्या – 1936 सबसे ज्यादा सराही गई। फ्लेशबैक में चलने वाली इस फिल्म की कहानी समाज की परंपरागत घारणाओं में समन्वय की समस्या का संकेत देती है।
इस अवधि में भाव और कला के संतुलन से संवरी अनेक महत्वपूर्ण फिल्में प्रदर्शित हुईं। जैसे मिनर्वा मूवीटोन के बैनर तले सोहराब मोदी ने खून का खून – 1935 ; जेलर, मीठा जहर व तलाक – 1938, पुकार – 1939 तथा सिकंदर – 1941 नामक ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण कर हिंदी सिने प्रेमियों को अपनी विशिष्ट शैली से अवगत कराया।
प्रभात एवं न्यू थियेटर्स की फिल्मों में नाटकीयता की अधिकता रहती थी और बाॅम्बे टाॅकीज की फिल्में सहज जीवन की सुखांत कहानियां लेकर चलती थीं। एक ओर प्रभात और प्रकाश की फिल्मों ने पौराणिक प्रसंगों की प्रभावशाली आख्या की तो दूसरी ओर मिनर्वा मूवीटोन की फिल्मों ने इतिहास के सुनहरे पन्नों को उजागर किया। मिनर्वा की पुकार से ऐतिहासिक फिल्मों का ऐसा दौर शुरू हुआ कि तमाम निर्माता निर्देशक इस क्षेत्र में कूद पड़े।