
गजल: होती जाती :
माजी की यादों से तनहाई नम होती जाती है
ये साँसों की गठरी भारी भरकम होती जाती है
कभी-कभी जज़्ाबातों की मनमानी आँधी चलती है
इस दिल की हालत बरसाती मौसम होती जाती है
आमदनी की तरह बढ़ा करती है उम्र जवानी में
और खर्च की तरह बुढ़ापे में कम होती जाती है
जब दिल के अरमान सफर करते-करते थक जाते हैं
ग़्ाम लाते हैं ख़ुशी, ख़ुशी जैसे ग़्ाम होती जाती है