
लोकगाथा: गौरा महेष्वर 2
हिन्दी रूपान्तर
वहाँ से उठे महेश्वर (स्वामी) चल पड़े।
जाते-जाते महेश्वर, (गौरा के) पितृ ग्रह पहुँचे।
(और) पिता के घर में अलख जगाई।
मैंना माई! मुझे भिक्षा दो, भिक्षा दो।
ले लो भिक्षा, ला गई हूँ।
माई! किस वस्तु की भिक्षा लाई हो, किस वस्तु की भिक्षा लूँ।
एक टोकरी सोना लाई हूँ। एक टोकरी रूपा।
तुम्हारे जैसा सुवर्ण रजत मेरे घर में बहुत है।
तुम्हारी सुवर्ण टोकरी नहीं लेता, न तुम्हारा रूपा।
अजीब-सा योगी आया। भिक्षा भी नहीं ली।
किस वस्तु की भिक्षा मांगते हो बोली, किस वस्तु की भिक्षा दूँ?
तुम्हारे घर में कुवारी कन्या है, मुझे दोगी कि नहीं?
धूल-धूसर जोगी। बड़ा भिक्षा के लिए अड़ा है।
तुझ जोगी को देने से तो (अच्छा है) सूर्य को दूँगी।
‘माई’, सूर्य को होगी तो जला कर भस्म कर देगा।
तुझ जोगी को देने से तो (अच्छा है) चन्द्रमा को दूँगी। क्रमशः