उत्तराखण्ड: स्वातंत्र्योत्तर काल:

उत्तराखण्ड: स्वातंत्र्योत्तर काल:

स्वातंत्र्योत्तर युग का कुमाउनी साहित्य तीन दृष्टियों से उल्लेखनीय है। एक तो इसमें पूर्वार्ध की स्फुट रचनाओं का पूर्ण पल्लवन हुआ है। दूसरे, मानव जीवन की विषमताओं से उत्पन्न परिस्थिति यों का विष्लेषण करने की प्रवृत्ति उभरी है। तीसरे, काव्य भाषा के उपयुक्त संस्कार की ओर लेखकों का ध्यान गया है, जिससे भाषा सूक्ष्म भावों की अभिव्यक्ति में समर्थ हुई है।

स्वतंत्र भारत की कुमाउनी पुरानी कुमाउनी से पर्याप्त भिन्नता लिए हुए है। उस पर हिंदी को प्रभावित करने वाली समस्त भाषाओं व बोलियों का प्रभाव हिंदी के माध्यम से भी पड़ा, क्योंकि षिक्षा का माध्यम होने के कारण वह नई पीढ़ी की आवष्यकता थी। हिंदी की तरह कुमाउनी में भी अरबी-फारसी-अंग्रेजी के अनेक षब्द नीर-क्षीर की भांति घुल-मिल गए हैं। इतना अवष्य है कि उनका उच्चारण कुमाउनी घ्वनियों के अनुरूप भी किया जाता है; जैसे आदमी/आदिम, स्कूल/इसकूल, ग्लास/गिलास, चाकू/चक्कु, दस्तखत/दस्कत आदि।

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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