लोककथा: चल चल तुमड़ि बाटौं बाट
आब त षेर, बाग, भालु तीनैं बुड़ि थैं त्वै खानूं कूंण लागा।
बुड़ियैल कयोः ‘‘देखो, तुम तीन ऐसिक आपस में लड़ला त
को को जै खालो मैंकैं ? मैं योस करूं कि पार उ बोटाका टुकि
में चड़ि जां। तुम तीनै बौटाका मुणि बै भै रवौ। मैं बोटाका टुकि
बै फाव मारूल, तुमन बै जो लै मैंके पकड़ि ल्योल, उई खै ल्योल।’’
तीनै राजि हैगे यौ बात पर बुड़िया बोट में चड़ण हुॅं बाट लागी और
तीनै वीक पछिन पछिन जै बेर बोटाका मुणि बै भैगे। षेर, बाग, भालु
तीनें आंखा तांणि बेर मलि चई भै। बोट में जै बेर बुड़ियैल पुन्तुरि खोलि
और कयो: ‘‘देखो, देखो, में यो कुदिं, उकुदिं’’ योस कून कूनें वील पिसो
लूण खुस्यांणि कुटुकी कुटुकि तली हुं फोकि। षेर, बाग, भालु का आंखन
लुण खुस्यांणि पड़ी त आंख त उनार बंद हैगे। पीडै़ल बौई बेर उ एक दुहार
कै उचेड़न लागा। बुड़िया बोट बै उतरि और बाट लागि आपण घर हुणि। तबै
त कूनी, बाग ठुलो न भालु, सबन है ठुलि अकल।।