लोकगीत : खड़ी होली :
पहाड़ में होली दो तरीके से गाई
जाती है। इसमें खड़ी होली और बैठी होली
प्रमुख हैं। खड़ी होली सोमेश्वर घाटी, गंगोलीहाट, कालीकुमाऊँ
, सोर
और
द्वाराहाट में होती है। इसमें गायन मंडलियां गांव की
पगडंडियों पर ढोल
बजाते हुए चलती हैं और घर-घर जाकर
सामूहिक रूप से खडे़ होकर
नाचते हुए पहाड़ी धुनों से मदमस्त
होली गीत गाती हैं।
कहो तो यहीं रमि जायं गोरी
नैना तुम्हारे रसा भरे
गोरी तुम कपाल बन जाओ
गोरी हम बिंदिया बन जायं
गोरी पैस तुमर कपाल में
झलकि-झलकि रस खायं
गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे
गोरी तुम अंखियां बन जाओ
गोरी हम कजरा बन जायं
गोरी पैस तुमर अंखियन में
झलकि-झलकि रस खायं
गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे
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