लोकगाथा: गौरा महेष्वर 1
हिन्दी रूपान्तर:
(त्रिशूली) शिखर की श्रेणी के, शीतल गह्वर में, महेश्वर उत्पन्न हुए।
गंगा के उपकंठ में; वटवृक्ष की छाया में, लली (गँवरा) उत्पन्न हुई।
नदी के किनारे लली (गौरा) गायें चरा रही थी।
नदी के पार महेश्वर स्वामी बकरी चरा रहे थे।
जाते-जाते महेश्वर स्वामी नदी के किनारे पहुँचे।
तुम किसकी कन्या हो, किसकी गायें चराती हो?
पिता जी मेरे, मेघमंडल में हैं। माँ नहीं है।
तुम यती-कन्या, क्या मेरे साथ विवाह करोगी?
पिता जी यदि देंगे तो क्यों नहीं करुंगी।
प्रातः काल आना महेश्वर! अलख जगाना।
लली! तुम्हारे पिता जी के घर कौन सा रास्ता जाता है?
पितृ-गृह को यह धरती वाला रास्ता जाता है।
पिता जी के घर के सामने चन्दन का वृक्ष है।
पिताजी के घर पर अलख जगाना।
सुवर्ण की अट्टालिका है, सुवर्ण का प्रांगण।
रूपा के द्वार हैं, सुवर्ण के कपात्र।