पर्व: प्रतीक्षा:
भक्तिकालीन सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी विख्यात कृति पद्मावत के नागमती वियोग खण्ड में लिखा है ेिक – अबहूं निठुर आउ एहि बारा? परब देवारी होइ संसारा। दीवाली के जगमगाते त्योहार का सिलसिला धनतेरस व नरक चैदस से होता हुआ अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचता है, जिसकी निरंतरता गोधन पूजन व भैयादूज तक बनी रहती हैे।
अमावस की रात के लिए तरह तरह से जुटाया गया सायास प्रकाष उषा की नैसर्गिक रष्मियों में अनायास विलीन हो जाता है। दीवाली का दिया कभी हवा के हल्के से झोंके से बुझ भी सकता है, पर दिल में जलने वाला मोहब्बत का दिया विषम परिस्थितियों में भी लगातार जलता रहता है। सिनेजगत के मषहूर षायर साहिर लुधियानवी के अनुसार –
सांसों की आंच पाके भड़कता रहेगा ये
सीने के साथ दिल में घड़कता रहेगा ये
वह दर्द क्या हुआ जो दबाए से दब गया
वह नक्ष क्या हुआ जो मिटाए से मिट गया
दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया
दुनिया की आंधियों से भला ये बुझेगा क्या
फिल्म – एक महल हो सपनों का