
गजल: अफसोस:
उतारे जब बुरी यादों के छिलके
नजर आए पुराने जख्म दिल के
हकीकत हो गई मालूम सबको
तुम्हारे गांव के लोगों से मिल के
उन्हीं के सामने सब कुछ हुआ था
लिहाजा रह गए हैं होंठ सिल के
उन्हें अफसोस है पेड़ों को लेकर
नहीं हंस पा रहे वो आज खिल के
गजल: अफसोस:
उतारे जब बुरी यादों के छिलके
नजर आए पुराने जख्म दिल के
हकीकत हो गई मालूम सबको
तुम्हारे गांव के लोगों से मिल के
उन्हीं के सामने सब कुछ हुआ था
लिहाजा रह गए हैं होंठ सिल के
उन्हें अफसोस है पेड़ों को लेकर
नहीं हंस पा रहे वो आज खिल के