
लोककथा: चल चल तुमड़ि बाटौं बाट :
बाट में घुरीन घुरीनै तुमड़ लागी भै। वां षेर, भालु, बाग लै बुढ़ियौ क बाटों चई भै। पैली षेरेलै तुमड़ि घुरि बेर उण देखि। वील तुमड़ि थैं पुछ: ‘‘तुमड़ी, तुमड़ी, आजा का दिन एक बुढ़ि यौ बाटै उनेर छिं। कैं बाट पन उण देखी त्वील?’’ तुमड़िक भितैर भैटिया बुढ़ि बुलाणि: ’’चल चल तुमड़ि बाटों बाट, मैं कि जाणू तेरि बुढ़ियै कि बात।’’ षैरै लै तुमणि कैं जाण दि।
तुमड़ि घुरीन घुरीनै बाट लागि। मणि अघिन कै बाट में बाग भैटि भै। बागै लै लै तुमड़ि कैं रोकि बेर पुछ कि कैं वील एक बुढ़ि कैं लै बाट पन देखो त तुमड़ि में पन्सींणि बुढ़ि बुुलाणि: ‘‘चल चल तुमड़ि बाटों बाट, मैं कि जांणू तेरि बुड़ियै कि बात?’’
आखीर में भालु लै बुड़ियौक बाट देखी भै। तुमड़ि उण देखी त वील लै उसै पुछ। भितेर भैटि बुढ़ियैल लै उसे जवाब दि। भालु कैं अई रीस त वील तुमड़ि में तकि बेर लात मारि। तुमड़ि क फुटि बेर द्वि टुकुड़ भै और भितैर देखींणी बुड़ि। षेर और बाग लै ऐ पुज उथकैंई बुड़ियै कि खोज में। देखछिया त तुमड़ि का त द्वि टुकुड़ हई भै और और बुड़ि भैटि भै। क्रमशः