उत्तराखण्ड : अंग्रेज शासन काल :
प्राचीन भाषा नमूनों से अनुमान किया जा सकता है कि
अठारहवीं सदी के अंत तक आते-आते कुमाउनी स्पष्टतर
होती गई है – संस्कृतनिष्ठता के स्थान पर तद्भव षब्दों
की ओर झुकाव बढ़ा है और कहीं-कहीं अरबी-फारसी के
षब्द भी प्रयुक्त हुए हैं।
1815 ई0 में कुमाऊं अंग्रेजों के अधीन हो गया था। अंग्रेजी
षासन काल में कुमाउनी के विकास में कोई अवरोध नहीं आया,
क्योंकि अंग्रेज स्वयं यहां की भाषा में पत्राचार करते रहे। कहा
जाता है कि सन् 1837 में कुमाऊं में लोकभाषा को ही षासन
की भाषा के रूप में प्रयोग करने का आदेष हुआ, किंतु
पाठषालाओं के लिए कुमाउनी भाषा में लिखी पाठ्य पुस्तकों
के अभाव में उस आदेष को व्यवहार में न लाया जा सका।
कुमाउनी के विकास के इस दूसरे चरण में कुमाउनी में
साहित्य भी रचा गया। इसके उन्नीसवीं षताब्दी के साहित्यकारों
में गुमानी, कृप्ण पाण्डे, चिंतामणि जोषी, गंगा दत्त उप्रेती,
लीलाधर जोषी तथा बीसवीं षती पूवार्ध के रचनाकारों में षिव
दत्त सती, गौर्दा, ष्यामाचरण दत्त पंत, जीवन चंद्र जोषी,
चंद्र लाल वर्मा चैधरी आदि के नाम विषेष रूप से उल्लेखनीय हैं।