पर्व: दीप जला जा:
दीवाली की रात बच्चों को बड़ी प्यारी लगती है, लेकिन जो
बचपन की परिधियों व किषोरावस्था की मर्यादाओं को लांघ
चुके हैं, उनका ध्यान खाने पीने की चीजों या आतिषबाजी
के तमाषों तक ही सीमित नहीं होता; बल्कि अपने उस प्रिय
पर भी केन्द्रित होता है, जो तनहाई में उनके दिल का दिया
जलाकर चला गया है। जो उनका मंदिर उनकी पूजा उनका
देवता है। जिसके अभाव में उनका त्योहार सूना है। जिसकी
उन्हें महालक्ष्मी से अधिक प्रतीक्षा है। जिसके बिना दीवाली के
दीप जलाना नहीं भाता –
आई दिवाली
दीप जला जा
ओ मतवाले साजना !
फिल्म – पगड़ी
दीपावली में प्रवासी प्रियतम की प्रतीक्षा परम प्रबल हो जाती है।
जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है कहीं ये वो तो नहीं ?
अगर वो नहीं तो षायद उनका संदेषवाहक ही हो ! यदि वो
नहीं तब तो वो आते ही होंगे, जरूर आते होंगे, आज दीवाली
है ना ? उसकी आषा की किरण किसी भी कीमत पर धूमिल नहीं
होना चाहती। उसके मनोभाव की उसके अलावा और किसी को
खबर नहीं होती, पर दीवाली के दिये उसके मन की बात को
महसूस करते हैं –
झूमझूम कर दिये की बाती
मुझको करे इषारा
जान गई आने वाला है
तेरा साजन प्यारा
दीवली की रात
सजन घर आने वाले हैं
बलम घर आने वाले हैं
फिल्म – कंचन