भाषा: देशी:
आधुनिक भाषाविज्ञान में देशी की परिभाषा किंचित् भिन्न
हो गई है। आज देशी के अन्तर्गत वे शब्द रखे जाते हैं,
जो भारतीय आदिवासियों की भाषा एवं बोलियों से वैदिक,
पाणिनीय संस्कृत, प्राकृत तथा नव्यभारतीय आर्य भाषाओं
में समय-समय पर आते रहे हैं।
आर्य भाषा में ऐसे शब्दों का आगमन वस्तुतः उस समय
से होने लगा था, जिस समय आर्य तथा अनार्य एक दूसरे
के सम्पर्क में आए थे। संस्कृत में घोटक तथा मयूर अनार्य
मूलक हैं। ये शब्द हिन्दी में घोड़ा और मोर के रूप में
व्यवहृत होते हैं।
कुमैयाँ में घ्वड़ या मोर देशी नहीं वरन् तद्भव माने जाएँगे,
क्योंकि वे संस्कृत के लिए देशी हो सकते हैं – कुमैयाँ के
लिए नहीं। कुमैयाँ के लिए वे शब्द देशी हैं, जो अपने देश
की किसी भाषा/ बोली से उसमें आए हैं – जैसेः
ब्रज : झगा / झगुलि ; ठौर / ठौर
अवधी: कुकुर / कुक्र ; महतारी / मता्रि
खड़ी बोली: मिठाई / मिठै ; देसी / दे्सि
राजस्थानी : मुनड़ि / मुनडि ; राणि / रा्नि