उत्तराखण्ड: चंद षासन काल:
कुमाउनी के विकास के प्रथम चरण अर्थात् चंद राजाओं के
षासन काल में लगभग चैदहवीं से सत्रहवीं सदी तक ज्यों-
ज्यों कुमाउनी बोलने वालों की संख्या तथा क्षेत्र में अभिवृद्धि
होती रही, त्यों-त्यों उनकी भाषा की रूप रचना में विविधता
बढ़ती रही। इस प्रक्रिया में कालक्रमानुसार एक ओर प्राकृत/
अपभ्रंष से प्रभावित प्राचीन व्याकरणिक रूप लुप्त होते रहे
और नव संपर्कजन्य नवीन रूप विकसित होते रहे। इस विकास
के परिणामस्वरूप इस चरण के अंत तक कुमाउनी भाषा की
निजी स्वतंत्र सत्ता स्पष्ट हो गई। इस चरण के प्रारंभ में
प्रचलित कुमाउनी भाषा के निम्नलिखित नमूने उपलब्ध होते हैं –
श्री षाके 1266 मास भाद्रपद राजा त्रिलोक चंद रामचंद चंपाराज
चिरजयतु पछमुल बलदेव चडमुह को मठराज दीनी।
उॅं स्वस्ति।। श्री षाके 1368 समये आषाढ़ वदि द्वादसि तिथौ
बुधवासरे राजाधिराज महाराज श्री भारती चंद विजय राज्ये।
उॅं स्वस्ति।। श्रीषाके 1452 समये मासानि वैषाष दिन पांच गते
चंद्र वासरे अमावाथौ महाराजाधिराज श्री महाराजा भिक चंद्र देव ले ।
श्री षाके 1555।। श्री महाराजाधिराज श्री विमलचंद्रदेव ले यागीष्वर
क्षेत्र अर्थादय पर्व संकल्पपूर्वक पादार्थ करी भूमि दीनी।