पर्व: दिवाली की रात:
बच्चों को मालूम होता है कि दीपावली की तैयारियां सिर्फ
उन्हीं के घर में नहीं हो रही हैं। लक्ष्मीजी के स्वागत के
लिए प्रत्येक घर के मुख्य द्वार से लेकर पूजाघर तक
उनके पदचिह्न अंकित किए जा रहे हैं। तरह तरह की
अल्पनाएं बनाई जा रही हैं। इस अवसर पर अपनी छोटी
सी खुषी का इजहार करने के लिए वे षाम होते ही दीप
और फुलझड़ी वगैरह जलाने के लिए मचलने लगते हैं।
मस्ती करने के लिए अपने घर की छत पर जाने पर उन्हें
पता चलता है कि सारी छतों पर वही सब हो रहा है। सारा
का सारा मोहल्ला जगमगाने लगा है। जहां तक नजर जाती
है रंगबिरंगी रोषनियां दिखाई देती हैं। चारों दिषाओं से लगातार
छूटते तरह तरह के पटाखों की गूंज सुनकर ऐसा प्रतीत होता
है कि –
धरती पर आए तारे गगन के
खुषियों से भर लो झोलियां
दीप जले घर घर में आई दिवाली
फिल्म – घर घर में दिवाली
आई दीवाली आई, कैसे उजाले लाई, घर घर खुषियों के दीप
जले। कोई पूजन की तैयारी में जुटा है, कोई दिये जला रहा है,
कोई खाने पीने में व्यस्त है, कोई खेलने कमाने में लगा है
और कोई जमीन पर उभरी आसमान की छबि निहार कर खुष
हो रहा है।
रोज आकाष पर चांद दिखाई देता था, चांदनी इठलाती थी,
तारे टिमटिमाते थे, मगर आज षायद चांद कहीं खो गया है,
जिसके बिना मायूस चांदनी कहीं गुम हो गई है, और तारे
उनकी तलाष करते करते कहीं दूर जाकर भटक गए हैं।
दीपमाला की धरती पे सुनके खबर
चांद निकला नहीं आज आकाष पर
आज धरती ही आकाष पर छा गई
जगमगाती दिवाली की रात आ गई
फिल्म : स्टेज