लोककथा: चल चल तुमड़ि बाटौं बाट :
जस जस बुढ़िया का घर हंु लौटणाका दिन नजीक अया
बुढ़ि यौ सोचि सोचि बेर झुरण लागि कि लौटण बखत त
बाग, भालु और षेर का हात वै म्योर बचि बेर जांण
मुसकिलै छु। एक दिन चेलिल पुछः ‘‘इजा इज, मैं
आपणि तरबै त तुकैं के तखलींप निं दिणयुं। भल भलै
खउण पिउण लागि रयूं। फिरि लै तु यौं दिनों दिन दुबलाती
जांणौछी। आखिर बात कि छु ?’’
बुढ़ियैल तब चेलि कैं आपण ऊंण बखतै कि बात बतै और
कयो: ‘‘आब म्यारा वापिस जांण बखत बाग, भालु, षेर
मैकै खांण हंुॅ बाट में भै रौल। उनन थैं बचि बेर निकलण
त म्योर मुसकिलै छु। एक है बचि लै गयूं त दुहर खालो।
यौई फिकर लागि रै।’’
चेलिल कै: ‘‘इजा यो त के फिकर करणैं बात न्हैं। खालि
फिकर करियै ल त के हुनेर नैं। एक अकल मैं बतंू तुमनकैं।
उसै करली त षेर बाग क्वे के निं करि सका। तुकै।’’ चेलिल
एक तुमड़ ल्हि बेर उकैं कोरि बेर खालि करि दि। खालि तुमड़ा
का भितैर बुड़ि कैं भैटै बैर वीक हात में पिसी लंूण खुस्यांणि
कि एक पुन्तरि पकड़ै दि और तुमड़ कै भलिक बंद करि बेर
बाट हुुं घुरियै दि।