लोकगीत : स्मरण गीत :
इनमें ससुराल में रहने वाली बहुएं अपने मायके को
याद करती हैं। भिटौली लेकर आने वाले भाई की
प्रतीक्षा करती हैं। उनकी मनोदशा ऐसी हो जाती है
कि कभी वे पक्षियों से यह विनती करती हैं कि वे
उनके मायके की ओर मुंह करके बोलें, जिसे सुनकर
उनकी मां उनके लिए भेंट भिजवाएगी और किसी गीत
में वे पक्षी से न बोलने का आग्रह भी करती हैं, क्योंकि
व्यथित मन को उनकी ही नहीं, बल्कि छोटी नदी तक
की आवाज नहीं सुहाती –
ए नि बासा घुघूती रून झून
म्यारा मैती का देसा रून झून
मेरी ईजु सुणैंली रून झून
ए नि बासा घुघूती रून झून
पारा द्यारा का रूखा का मूंड़ीं
कै चांणैछी पगली तु उड़ी
तेरि दासा देखि लागि जांछो
मैं निसासा घुघूती रून झून
काटि खांछ गाड़ा को सुसाट
मैं चाणै रै गयूं वी को बाट
र्वै उठी छ पराणी सुवै कि
मैं उदास घुघूती रून झून