उत्तराखण्ड: देवनागरी:
इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुमाउनी
पर एक ओर आग्नेय, दरद-खस व प्राकृत का प्रभाव लक्षित
होता है, तो दूसरी ओर उसमें अर्धमागधी की विषेषताएं भी
विद्यमान हैं। इतना होने पर भी रूपात्मक गठन की दृष्टि
से वर्तमान कुमाउनी में षौरसेनी अपभ्रंष के प्रायः सभी भाषिक
तत्वों की स्थिति दृष्टिगत होती है।
कुमाउनी भाषा की लिपि देवनागरी ही है। कुमाउनी के प्राचीनतम
नमूने षक संवत् 1266 अर्थात् चैदहवीं षती पूर्वार्ध के उपलब्ध
हुए हैं। उससे पूर्व की कुमाउनी के विषय में कुछ कहने के लिए
ठोस प्रमाण नहीं हैं। देवनागरी में उत्कीर्ण कुमाउनी के प्रारंभिक
कालीन षिलालेखों एवं ताम्रपत्रों की भाषा में संस्कृत के षब्दों के
प्रयोग की परंपरा परिलक्षित होती है, जिसमें उच्चारण संबंधी
प्रयत्न लाघव के कारण सरलीकरण की प्रवृत्ति स्पष्ट है।
कालांतर में विकसित होती हुई कुमाउनी में एक ओर तद्भव
षब्दों की बाढ़ आनी षुरू हुई तो दूसरी ओर नवागंतुकों के
संपर्क से अन्य देषी एवं विदेषी भाषाओं के षब्दों के प्रयोग
का प्रचलन बढ़ा।
मध्यकाल में राजस्थानी, ब्रज व अवधी ने जिस तीव्र गति से
कुमाउनी को प्रभावित किया, उससे ज्यादा तीव्र गति से आधुनिक
काल में खड़ी बोली हिंदी कुमाउनी को प्रभावित कर रही है। कहीं-
कहीं ये प्रभाव इतना अधिक प्रबल हो गया है कि हिंदी व कुमाउनी
में स्थानीय उच्चारण वैषिष्ट्य के अतिरिक्त कोई अंतर प्रतीत नहीं
होता।
कुमाउनी की विकास यात्रा के तीन चरण माने जाते हैं –
क्रमषः