पर्व: दीपावली:
दीपावली के आनंदवर्धक अवसर पर केवल घर द्वार का
ही प्रदूषण दूर नहीं किया जाता, वरन् मन मंदिर को भी
समस्त विरोधी मनोविकारों से मुक्त किया जाता है। हर
तरह के गिले षिकवे मिटाकर कोमल और मधुर भावनाओं
के गुलदस्ते सजाए जाते हैं। नफरत के अंधेरे के खिलाफ
प्यार के उजाले का माहौल पैदा किया जाता है, जिसमें
सभी के हृदय प्रेम की ज्योति से आलोकित हों। एक ज्योति
से कई ज्योतियां जलें तथा समस्त भेदभाव मिटाकर सारा
जग प्रेम भाव से प्रकाशित हो उठे। दीवाली का संदेष ही
यही है कि –
जोत से जोत जलाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो
दीपावली के अवसर पर श्रीगणेष और महालक्ष्मी के पूजन
अर्चन के लिए हर परिवार में हर्षोल्लास पूर्वक तैयारियां की
जाती हैं। इन तैयारियों में बड़ी बड़ी कंदीलें, छोटी छोटी मोम
बत्तियां, नए नए चित्र, पुराने पुराने सिक्के, नन्हे नन्हे दिये,
लंबी लंबी फुलझड़ियां, उपर जाने वाले पटाखे, देर तक जलने
वाले अनार, रंग बिरंगी दियासलाइयां, टिमटिमाने वाली बिजली
की झालरें, तरह तरह के पकवान, भांति भांति की मिठाइयां,
तमाम खील खिलौने, और ढेर सारे बताषे देखकर सभी का मन
विशेष रूप से प्रसन्न हो जाता है। वे जानते हैं कि महालक्ष्मी के
स्वागत में आज –
दीप जलेंगे दीप
दिवाली आई हो
(फिल्म – पैसा)