गजल : उसको :
हम लोग ही तो अपना बताते रहे उसको
दुश्मन था दोस्त जैसा निभाते रहे उसको
हममें से ही कुछ लोगों ने यह आग लगाई
हममें से ही कुछ लोग बुझाते रहे उसको
यह जि़्न्दगी बहते हुए पानी की तरह है
इक जगह ठहरने से बचाते रहे उसको
ठहरेगी तो दर्दों के भँवर तंग करेंगे
ठहरे न वो आगे को बढ़ाते रहे उसको